जीवन टूटते, संवरते विचारों की एक डगमगाती नौका है जो सांसों की लहरों और सामाजिक भंवरों में निरंतर डूबती और उबरती हुई अपना रास्ता बनाती चलती है. इस दौरान जीवन में अनेक खट्टे-मीठे और मनोरम पड़ावों की अनुभूति होती है . याद रह जाते हैं तो केवल जिन्दगी के मुस्कराते और गुदगुदाते हुवे क्षण और ये क्षण ही हमारी प्रेरणा व उर्जा बन कर हमारी जीवन नौका को आत्म विश्वास व रोचकता प्रदान करते हुवे निश्चित लक्ष्य की ओर प्रेरित करते हैं.
Tuesday 22 May 2012
मुक्तक
पढ़ना चाहो तो भूंख प्यास के इतिहासों को पढ़ा करो,
किसी की तड़पन दर्द सिसकियों को त्रासों को पढ़ा करो.
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